मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ शुभ जानी॥ अर्थात - माता-पिता, गुरु और स्वामी की बात को बिना ही विचारे शुभ समझकर करना (मानना) चाहिए। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने माता पिता की तुलना स्वयं भगवान से की है।